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Ram mandir अयोध्या 500 वर्षों की ऐतिहासिक यात्रा || Full struggling history of ram mandir ||

Ram mandir साल 1528 में मीर बाकी जो बाबर का सेनापति हुआ करता था उसने अयोध्या में बाबरी मस्जिद की नीव रखी थी यह मस्जिद ठीक उसी जगह पर बनाई गई जहां प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था और इसे बनाने के लिए वहां पहले से मौजूद मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया था अब मुगलों ने भगवान को उनके घर से तो निकाल दिया पर इन्हें कौन बताए कि भारत के लोगों के तो दिलों में राम बसते हैं और श्री राम के प्रति हमारी यही श्रद्धा है जिसने सालों तक चले कोर्ट केस के बीच भी किसी के मन से राम मंदिर बनने की आस को खत्म नहीं होने दिया

Ram mandir

अब करीब 500 सालों के इंतजार के बाद 2019 में सनातन की जीत हुई है और 2 जनवरी 2024 के दिन रामलला टेंट से निकलकर एक बार फिर से मंदिर में निवास करने जा रहे हैं लेकिन अगर आप अपने धर्म के प्रति वफादार हैं तो फिर बाबरी मस्जिद के निर्माण से लेकर फिर से राम मंदिर बनने तक के इस सफर को आपको जरूर जानना चाहिए

Ram mandir
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History of Ram mandir

तो दोस्तों साल 1526 में मुगल साम्राज्य शुरू होने के महज 2 साल बाद ही यानी 1528 में बाबर के कहने पर उसके सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में राम मंदिर को तोड़वा दिया और उसकी जगह पर एक मस्जिद बनवाई जिसका नाम बाबर के सम्मान में बाबरी मस्जिद रखा गया अब मुगल काल में सिर्फ अयोध्या का राम मंदिर ही नहीं बल्कि हजारों मंदिर तोड़े गए थे जिनके सबूत आज भी हमें देश के कोने-कोने में देखने को मिल जाते हैं पर उस टाइम बाबर ने विरोध की हर आवाज दबा दी और हिंदुओं को उनके ही देश में उन्हीं के भगवान से दूर रखा गया

Britishers on Ram mandir

पर इस कहानी में ट्विस्ट उस समय आया जब साल 1813 के आसपास फैजाबाद के ब्रिटिश ऑफिसर ने एक रिपोर्ट तैयार की जिसमें उन्होंने मस्जिद के अंदर हिंदू मंदिर जैसी कलाकृतियां मिलने का जिक्र किया था और दोस्तों इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद ही पहली बार हिंदू संगठनों ने दावा किया कि बाबर ने साल 1528 में राम मंदिर तोड़वा करर मस्जिद बनाई थी इस तरह के दावे सामने आने के बाद हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच नफरत की आग जलने लगी और साल शह के समय पहली बार अयोध्या में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी

Rebuilding of Ram mandir

हालांकि इसके बाद भी हिंदू और मुस्लिम एक ही जगह पर पूजा और नमाज अदा किया करते थे पूजा और नमाज एक ही जगह पर आप सोच रहे हैं ना कि आखिर कैसे तो चलिए इसकी भी स्टोरी को हम आपको बताए चलते हैं एक्चुअली 1717 यानी कि बाबरी मस्जिद बनने के 190 साल के बाद जयपुर के राजा जयसिंह द्वितीय वो पहले शख्स थे जिन्होंने मस्जिद और उसके आसपास की जमीन को हासिल करने की कोशिश की थी जिससे कि वह एक बार फिर से वहां पर राम मंदिर बनवा पाएं

लेकिन ला कोशिशों के बाद भी राजा जयसिंह द्वितीय को कोई कामयाबी नहीं मिलती है जिसके बाद वह मस्जिद के पास एक चबूतरा बनवाते हैं और उस चबूतरे का नाम राम चबूतरा रखते हैं ताकि प्रभु श्री राम में आस्था रखने वाले लोग उस चबूतरे पर पूजा कर सकें अब जब साल 1852 ढांचे के परिसर के अंदर मुख्य गुंबद से 150 फीट दूर बनाया गया था इसके बाद आगे चलकर 1885 में राम जन्मभूमि की यह लड़ाई अदालत पहुंची जहां निर्मोही अखाड़े के महंत रघुवर दास ने फैजाबाद के न्यायालय में बाबरी ढांचे के बाहरी आंगन में स्थित राम चबूतरे पर बने अस्थाई मंदिर को पक्का बनाने और छट डालने की मांग की

जिस पर जज ने यह फैसला सुनाया कि वहां हिंदुओं को पूजा अर्चना करने का तो अधिकार है लेकिन वह मंदिर को पक्का बनाने और छट डालने की अनुमति नहीं दे सकते हालांकि इसके कुछ दशक के बाद यानी 1934 में अयोध्या में एक बार फिर से दंगे होते हैं जिसमें बाबरी मस्जिद का कुछ हिस्सा टूट जाता है हालांकि बाद में इस हिस्से को रिपेयर करवा दिया जाता है लेकिन यह घटना होने के बाद से यहां नमाज बंद हो जाती है

Ram mandir
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और ध्यान दीजिएगा यह वह समय था जब देश पर अंग्रेजों का राज हुआ करता था लेकिन इसके बावजूद देश की जनता बाबरी मस्जिद बन बनने के 400 साल बाद भी अपने प्रभु के जन्मस्थली को पाने की लड़ाई लड़ रही थी उस समय ना तो हमारी अपनी खुद की सरकार थी और ना ही मीडिया को इतनी आजादी थी कि वह इन मुद्दों को देश के हर नागरिक के सामने ला सकें और तो और देश को चलाने वाली कांग्रेस ने भी इन मुद्दों से किनारा किया हुआ था हां अगर कोई चिंतित था तो वह थी देश की आम जनता जो कि अपनी जान की बाजी लगाकर अपने प्रभु के हक की लड़ाई लड़ रही थी

Ram mandir after independence

इसी तरह से समय बीतता जाता है और साल 1947 आता है जब देश को सालों की गुलामी के बाद अंग्रेजों से आजादी मिली थी आजादी के साथ ही लोगों की यह उम्मीदें भी बढ़ जाती है कि अब तो राम मंदिर बन कर ही रहेगा लेकिन उस समय की स्थिति तो कुछ और ही बयां कर रही थी कांग्रेस का कोई भी बड़ा नेता इस मुद्दे पर बात करना तो बहुत दूर की बात है उन्होंने तो इस मुद्दे को लेकर सीधे अपने हाथ ही खड़े कर दिए थे और दोस्तों फिर पॉलिटिकल सपोर्ट ना मिलने के बाद ही शुरू होता है असली विवाद

Murti or idol of shri ram in babri masjid

23 दिसंबर 1949 की सुबह अचानक से चारों तरफ यह बात फैल जाती है कि विवादित ढांचे के अंदर भगवान श्री राम की मूर्ति पाई गई हैं हिंदू पक्ष यह दावा करने लगते हैं कि बेती रात भगवान श्रीराम प्रकट हुए हैं जबकि मुस्लिम पक्ष यह आरोप लगाते हैं कि किसी ने रात के अंधेरे में चुपचाप वहां पर मूर्तियां रख दी हैं अब जैसे ही इस बात की खबर चारों तरफ फैलती है दोनों पक्षों के लोग मस्जिद परिसर में इकट्ठा हो जाते हैं विवाद को बढ़ता हुआ देख उस टाइम के प्राइम मिनिस्टर जवाहरलाल नेहरू जिला मजिस्ट्रेट केके नायर को चिट्ठी लिखकर यह आदेश देते हैं कि मूर्ति को वहां से हटाया जाए और स्थिति को शांत किया जाए लेकिन केके नायर दंगो और हिंदुओं की भावना के भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में हाथ खड़ा कर देते हैं

Politics on Ram mandir

केके नायर प्राइम मिनिस्टर नेहरू जी को जवाब में लिखते हैं कि अगर मंदिर से मूर्तियां हटाई गई तो इससे हालात बिगड़ जाएंगे और हिंसा भी बढ़ सकती है लेकिन दोस्तों जब यह पत्र नेहरू जी तक पहुंचता है तब वह नायर जी के खत के जवाब में एक और खत लिखते हैं और फिर वापस से मूर्ति हटवाने की ही बात कहते हैं लेकिन केके नायर इस बार भी अपने हाथ पीछे खींच लेते हैं और मूर्ति को हटाने से साफ इंकार कर देते हैं इस घटना के 7 दिन बाद ही फैजाबाद कोर्ट के द्वारा बाबरी मस्जिद को विवादित भूमि घोषित करके इसके मुख्य दरवाजे पर ताला लगा दिया जाता है

Ram mandir
Ram mandir , Ram mandir

Land allocation campaign

इसके बाद से 1950 में फैजाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जी दाखिल की गई जिसमें एक में रामलला की पूजा की इजाजत और दूसरे में विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति रखने की इजाजत मांगी गई हालांकि 9 साल के बाद तीसरी अर्जी भी 1959 में दाखिल हुई जिसमें निर्मोही अखाड़ा ने विवादित जगह पर मालिकाना हक जताया था लेकिन फिर इस अर्जी के 2 साल बाद यानी 1961 में सुन्नी वक बोर्ड ने भी कोर्ट में अर्जी लगाई और मस्जिद व आसपास की जमीन पर अपना हक जताया यह क्रम लगातार चलता रहा कभी हिंदू पक्ष तो कभी मुस्लिम पक्ष विवादित जमीन को अपने अधिकार में लेने के लिए तरह-तरह के दावे करते रहे

Political agenda

लेकिन इसके बाद 1980 में बीजेपी के गठन के बाद पार्टी ने खुलकर राम मंदिर आंदोलन का मोर्चा संभाला वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद ने भी राम मंदिर की लड़ाई को तेज कर दिया था राम जन्मभूमि को आजाद करवाने और उस पर लगा ताला खुलवाने के लिए 24 सितंबर 1984 को बिहार के के सीता मणि से राम जानकी रथ यात्रा शुरू हुई जिसमें हजारों लोग इस यात्रा के साथ जुड़े

7 अक्टूबर 1984 को यह यात्रा अयोध्या पहुंची जहां सरियों नदी के तट पर लाखों लोग इकट्ठा हुए वहां पर अयोध्या में भव्य राम मंदिर का संकल्प लिया गया और फिर यात्रा लखनऊ होते हुए दिल्ली के लिए निकल गई एक्चुअली इस यात्रा में 31 अक्टूबर 1984 को दिल्ली के विज्ञान भवन में संतों को जुटना था और यहीं इस यात्रा का समापन भी होना था लेकिन उसी दिन सुबह-सुबह प्राइम मिनिस्टर इंदिरा गांधी की हत्या हो गई और रथ यात्रा को बीच में ही खत्म करना पड़ा

Impact of shah bano case

इसके बाद आता है साल 1985 का साल जब राम मंदिर लड़ाई को एक नई दिशा मिलती है एक्चुअली इसी साल शाहबानो नाम की एक मुस्लिम महिला अपने पति से तलाक मिलने के बाद गुजारा भत्ता के लिए कोर्ट पहुंचती है जहां कोर्ट उसके पक्ष में ही फैसला सुना देती है अब इस फैसले से मुस्लिम समुदाय नाराज हो जाता है और दोस्तों इस कम्युनिटी के लोगों की नाराजगी को दूर करने के लिए उस टाइम के प्राइम मिनिस्टर राजीव गांधी 1986 में संसद में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को को ही पलट देते हैं

Ram mandir
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असल में राजीव गांधी 1979 के इलेक्शन के लिए यह सब कुछ कर रहे थे ताकि उन्हें मुस्लिम समुदाय के लोगों से भी वोट मिल सके हालांकि राजीव गांधी के शर्मनाक कदम से हिंदुओं से नाराज होकर उन पर मुस्लिम कम्युनिटी को खुश करने का आरोप लगाते हैं जिसके बाद इस डैमेज को कंट्रोल करने के लिए राजीव गांधी एक और ऐतिहासिक भूल करते हैं और यह भूल होती है हिंदुओं की मांग को मानने की जिसके लिए वह 1986 में ही 37 सालों से बंद अयोध्या के विवादित बाबरी ढांचे का ताला खुलवा देते हैं

Reopening of disputed land

जिससे कि वहां फिर से पूजा अर्चना शुरू हो जाती है अब देखिए फिर से यहां मुस्लिम कम्युनिटी राजीव गांधी के इस फैसले से नाराज हो जाती है और 6 फरवरी 1986 को बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया जाता है अब इसके बाद से आता है 1990 का साल जब 25 सितंबर को लाल कृष्ण आडवाणी राम मंदिर के इस आंदोलन को बीजेपी का आंदोलन बताते हुए सोमनाथ से अयोध्या के लिए 10000 किमी की रथ यात्रा निकालते हैं और दोस्तों इस रथ यात्रा के दौरान बिहार
में लाल कृष्णा आडवाणी का रथ रोकते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है

और रथ यात्रा पर यही रोक लगा दी जाती है लेकिन असल में जिस दिन यह यात्रा खत्म होनी थी यानी कि 30 अक्टूबर 1990 को हजारों कार सेवक अयोध्या में जमा हो जाते हैं अब जिन्हें कार सेवक के बारे में नहीं पता उन्हें हम बता दें कि कार सेवक का मतलब उन लोगों से है जो निस्वार्थ भावना से सेवा करते हैं और धर्म की रक्षा के लिए कदम उठाते हैं अब 30 अक्टूबर को भी कार सेवकों ने यही किया वह अयोध्या में विवादित ढांचे पर झंडा फहरा देते हैं हालांकि पुलिस कार सेवकों को
रोकने की बहुत कोशिश कर ती है इवन कर्फ्यू भी लगा दिया जाता है

Mass murder of kar sevak

लेकिन जब इससे कोई फायदा नहीं होता तब भीड़ पर काबू पाने के लिए उस समय यूपी के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे देते हैं जिससे कि कई सारे कार सेवक मारे जाते हैं दावा किया जाता है कि पुलिस की इस गोलाबारी में 55 राम भक्त मारे गए थे जबकि यूपी पुलिस 17 कार सेवकों के मारे जाने की ही बात को मानती है इसके बाद आता है 6 दिसंबर 1992 की तारीख उस समय पीवी नरसिंहा राव देश के प्राइम मिनिस्टर थे और कल्याण सिंह यूपी के के मुख्यमंत्री इसी दिन 2 लाख कार्य सेवक विवादित ढांचे के पास इकट्ठा हो जाते हैं

और कहा जाता है कि कार सेवकों के अयोध्या पहुंचने से पहले ही कल्याण सिंह कोर्ट को यह भरोसा दिला चुके थे कि यह विवादित ढांचे को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं होने देंगे साथ ही यह भी खबर मिलती है कि कल्याण सिंह ने पुलिस को यह आदेश दिया हुआ था कि चाहे कुछ भी हो जाए वो भीड़ पर गोली नहीं चलाएंगे वहीं दूसरी तरफ हजारों कार्य सेवक जो 6 दिसंबर 1992 की सुबह विवादित ढांचे के पास खड़े थे वो दोपहर तक ढांचे के ऊपर चढ़ जाते हैं और 1:55 पर विवादित ढांचे के एक गुंबद को गिरा देते हैं और फिर डेढ़ घंटे बाद यानी करीब 3:30 बजे वो दूसरा गुंबद भी गिराते हैं और फिर शाम के करीब 5:00 बजे तक वह तीनों गुंबद ही गिरा देते हैं जिससे कि पूरे यूपी में हाहाकार मच जाता है

Presidential rule in uttar pradesh

और स्थिति को काबू में करने के लिए यूपी में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता है ढांचा गिराए जाने के कुछ ही घंटों के बाद से कल्याण सिंह जी यूपी के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देते हैं लेकिन उस टाइम उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि इस बात का उन्हें कोई मलाल ही नहीं है और और दोस्तों इस बात को उन्होंने 2019 में खुद स्वीकार किया था क्योंकि जब सुप्रीम कोर्ट से राम मंदिर पर फैसला आया तब एक न्यूज़ चैनल से बात करते हुए कल्याण सिंह ने कहा था कि ढांचा ढाए जाने का मलाल ना तो तब था और ना अब है

Ram mandir
Ram mandir ,Ram mandir

राम मंदिर बनने के फैसले से मैं इतना खुश हूं कि अब मैं चैन से मर पाऊंगा खैर 1992 की घटना के बाद भी अलग-अलग जगह पर कई बार दंगे हुए जिसमें बहुत सारे लोग मारे गए लेकिन इसके बावजूद कोर्ट में शांति छाई रही लेकिन 90 के दशक में जब वापस से बीजेपी की सरकार बनी तब एक बार बार फिर से देश में राम मंदिर की लड़ाई तेज हो गई बीजेपी ने 1999,2004 और फिर आगे जितने भी चुनाव हुए उसमें राम मंदिर को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया और इस दौरान एक लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी

और आखिरकार 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट एक ट्रस्ट बनाकर विवादित स्थल पर राम मंदिर को बनाने की अनुमति दे देती है और साथ ही वह मस्जिद के लिए भी एक वैकल्पिक जमीन देने का आदेश देती है जिसके बाद से 5 फरवरी 2020 को ट्रस्ट का गठन किया जाता है और फिर राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो जाता है तो 1528 में बाबर के कहने पर राम मंदिर को गिराकर उसके जगह पर बाबरी मस्जिद को खड़ा किया गया था लेकिन अब 492 साल के बाद इसी जगह पर ही राम मंदिर का निर्माण हो रहा है जो कि हर एक हिंदुस्तानी के लिए गर्व की बात ||

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